Tuesday, 31 March 2015
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे
कुछ शक्ति ढूंढ रहे हैं, तो कुछ युक्ति ढूंढ रहे हैं
तेरी इस सुंदर दुनिया से, कुछ मुक्ति ढूंढ रहे हैं
बस इतना सक्षम कर देना, कर्तव्य कभी भी लगे न भार
मैं क्यूँ ढूंढ़ू फिर शांतिमार्ग, मैं क्यूँ ढूंढ़ू कोई मुक्ति-द्वार
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे, इसकी मुझको क्यूँ हो दरकार
तुमने ही दिया है मेरे सारे सपनों को सच में आकार
कुछ शब्दों में कैसे लिख दूँ, मुझ पर तेरे कितने उपकार
उत्कृष्ट तथा संतुष्ट हैं जो, मुझे स्नेह मिला उनसे अपार
मैंने जाने किन कर्मों के प्रतिफल में पाया ये उपहार
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे, इसकी मुझको क्यूँ हो दरकार
ये नीला सा आकाश, मुझे ऊंचा उठना सिखलाता है
इस सबल धरा का धैर्य सदा, संयम का पाठ पढ़ाता है
ये नदियां, और ये झरने, सन्देश त्याग का देते हैं
ये वृक्ष फलों से झुके हुए, अभिमान तजो ये कहते हैं
इक क्षण में मेरे संशय सब, कर देते हैं ये निराधार
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे, इसकी मुझको क्यूँ हो दरकार
इस रंग मंच के पात्र सभी, इस मंचन में हँसना-रोना
मुझको तो अच्छा लगता है बंधन में बंध के भी रहना
मिट्टी के इक पुतले को तुम, कैसे करते हो यूं साकार
कोटि-कोटि है नमन तुम्हें, हो सर्वश्रेष्ठ तुम रचनाकार !
जो आपने इतने मनोयोग से रचा है ये सुंदर संसार
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे, इसकी मुझको क्यूँ हो दरकार
---भावना
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