इस अप्रत्याशित जीवन में
कल क्या होगा ये नहीं है ज्ञात
कुछ बातें लगती अंत कभी
कभी लगती जैसे हो शुरुआत
कभी तिमिर भला सा लगता है
कभी चुभता सा है ये प्रभात
कभी दोनों ही प्रिय लगते हैं
हो उज्जवल दिन या श्यामल रात
इन गूढ़ रहस्यों का बोधन
इतना भी सरल नहीं होगा
कि हर कोई सब जान ही ले
कुछ तो कारण होंगे अज्ञात