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मन में उमड़े हैं फिर बादल, सोचा कुछ आज लिखूं मैं
दिल की इन स्याह सी बातों से, कुछ पन्ने आज रंगू मैं .......
इक गहरा सन्नाटा सा छाया है मेरे अन्दर ...
कुछ प्रश्नों के पर शोर भी हैं, जो चुभते जैसे नश्तर ..
हम तो मनुष्य थे, सभ्य भी थे, सुसंस्कृत भी ..
पर अब क्यूँ बनने लगे पशु, दानव और पत्थर ...
क्या वो भूल गए, कलियों से ही खिलता है गुलशन..?
ये भी भूल गए कि हम ही करते थे कन्या पूजन ...?
बहन-बेटी जैसे शब्द तो उनको याद ही होंगे ...?
या ये भी भूल गए कि किसने उन्हें दिया जीवन ..?
मानव जन्म मिला है , न करें कुकृत्य इसे लजाने का
उस गर्त में भी ना गिर जायें कि साहस ही न हो उठ पाने का
अब वक़्त है उन्हें चेताने का, ये सब कुछ याद दिलाने का ..
नारी का अर्थ नहीं है बस, आहत होकर सह जाने का ..
यदि नारी ममता है, तो शक्ति भी है, वो श्रद्धा है, धरती भी है….
वो कोमल है, तो ऊर्जा भी है, यदि लक्ष्मी है, तो दुर्गा भी है….
हे अबला ! अब सबला बन के, तुझे अपनी लाज बचाना होगा ..
आ गए कई 'महिषासुर' हैं; 'दुर्गा ' बन उन्हें मिटाना होगा ....
मन में उमड़े हैं फिर बादल, सोचा कुछ आज लिखूं मैं
दिल की इन स्याह सी बातों से, कुछ पन्ने आज रंगू मैं .......