Thursday, 2 April 2015

वक़्त


ऐ वक़्त, ज़रा सा ठहर कभी, कर लें बातें दो-चार
ना छोड़ के जा, यूं खफा न हो, ना कर मुझको बेज़ार
माना तू आज नहीं मेरा, आखें जो ऐसे चुरा रहा
इक रोज़ तो मेरा ही होगा, फिर क्यूँ करना तकरार

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