Sunday, 21 February 2016

समय

एक दृढ़, विशालकाय पर्वत को
हर क्षण मिटते देख रही हूँ
जो बातें करता था अम्बर से
उसे धरा पे गिरते देख रही हूँ

मेरा ये कोमल ह्रदय,
काँप उठता है इस परिवर्तन पर,
किंचित, ऐसा ही लगता होगा
जब तलवार धरी हो गर्दन पर
समय बड़ा बलवान है,
सुनते आई थी ये बचपन से
कठोर प्रहार उस क्रूर समय का
अपनों पे पड़ते देख रही हूँ

एक दृढ़, विशालकाय पर्वत को
हर क्षण मिटते देख रही हूँ
जो बातें करता था अम्बर से
उसे धरा पे गिरते देख रही हूँ

4 comments:

  1. Beautifully said ...I love your writings bhawana

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  2. Feelings at peak
    Appreciated👍

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  3. अभी आपका ब्लॉग देखा , अच्छा लगा ।कुछ कविताएं समूह में आनी चाहिए ।

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  4. Hey there bhawanabhas information or the article which u had posted was simply superb and to say one thing that this was one of the best information which I had seen so far, thanks for the information #BGLAMHAIRSTUDIO
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