Sunday, 21 February 2016

समय

एक दृढ़, विशालकाय पर्वत को
हर क्षण मिटते देख रही हूँ
जो बातें करता था अम्बर से
उसे धरा पे गिरते देख रही हूँ

मेरा ये कोमल ह्रदय,
काँप उठता है इस परिवर्तन पर,
किंचित, ऐसा ही लगता होगा
जब तलवार धरी हो गर्दन पर
समय बड़ा बलवान है,
सुनते आई थी ये बचपन से
कठोर प्रहार उस क्रूर समय का
अपनों पे पड़ते देख रही हूँ

एक दृढ़, विशालकाय पर्वत को
हर क्षण मिटते देख रही हूँ
जो बातें करता था अम्बर से
उसे धरा पे गिरते देख रही हूँ

घर की बारात

बड़े दिनों के बाद घर की शादी' और बारात अटेंड करने का मौका मिला. मज़ा आ गया। मेरे घर के, हमारी जनरेशन के सबसे छोटे बेटे .. यानी घर में मेरे सबसे छोटे भाई की शादी थी। ऑफिस व अन्य उत्तरदायित्वों के कारण सीधे शादी वाले दिन ही पहुंच सकी. बड़े दिनों बाद बिल्कुल बेफिक्री के कुछ घंटे बिताये। पर इस बार, बारात में एन्जॉय करने' के साथ ही मैंने कुछ बातों पे गौर भी किया. कुछ मज़ेदार और कुछ संवेदनशील बातें. बारात में भाइयों में जो प्रेम दिखता है वो और कभी नहीं. कम से कम अपने यहाँ की शादियों में तो मैंने यही महसूस किया है. ज़ाहिर सी बात है वो प्यार तो होता ही है पर वो प्यार, शादी के माहौल और कुछ सोमरस के पान के कारण बिलकुल उबाल मारने लगता है. अरे मैंने तो बिना सोमरस पान के भी खुद में उस उबाल को महसूस किया है. सब भाइयों-भाभियों, दीदी -जीजा जी लोग जो बहुत महीनों या सालों से नहीं मिले, जब किसी गाने पे same स्टेप फॉलो कर देते हैं, उस समय जो ख़ुशी मिलती है वो न तो पीएचडी के पेपर्स पब्लिश कर के मिली थी और ना ही अपनी पहली सैलरी पाके . .. .सच्ची। !

अच्छा, कुछ लोगों का कॉम्बिनेशन भी होता है डांस का' जो' चाहे कितने भी दिनों के बाद मिले हो बारात में इक - दूसरे को पकड़ ही लेते हैं और सबको आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से परिपूर्ण कर देते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ नागिन डांस स्पेशलिस्ट होते हैं। मेरे यहाँ तो कई हैं. मैंने इस बार विशेष गौर किया। नागिन धुन बजते ही उनकी आखों में एक विशेष चमक आ जाती है। मेरे तीन भाई इस विधा के विशेष जानकार हैं। (कहने को तीनो अलग अलग भाइयों की संताने हैं पर जो प्यार इन तीनों में आपस में है, वो किसी को अपनी बीवी और बच्चों से भी नहीं। नज़र न लगे). हाँ , तो मैं बता रही थी की नागिन धुन बज़ने का आर्डर मिलने पे बैंड वाला जितने कॉन्फिडेंस के साथ अपना वो म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट उठाता है, उससे ज़्यादा कॉन्फिडेंस से मेरा एक भाई अपनी जेब से रूमाल निकल कर उसको बीन की शकल देता है। होता तो ये हर बार ही होता होगा पर इस बार चूँकि मैं' काफी analysing मूड में थी , मुझे बहुत अच्छा लगा , और वो सीन मेरी आँखों से जा ही नहीं रहा। और फिर बाकी के दो और साथ में कुछ अन्य पार्टिसिपेंट्स नागिन का जो रूप धरते हैं, अवणर्नीय है , इतना आकर्षक कि , मैं भी खुद को रोक न सकी. ये प्रसंग तब तक संपूर्ण नहीं माना जाता जब तक कोई एक या २-३ लोग अपने सूट के गंदे होने या बीवी द्वारा बाद में दिए जाने वाले पुरस्कार के भय को भी पराजित कर रोड पर ही लेट जाते हैं. सच्ची , उस समय दिल में' उपजे भावों को शब्दों में व्यक्त कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है.

एक और ध्यान देने वाली बात होती है, हमारे यहाँ.... शायद आप लोगों के यहाँ भी होती हो,........ एक स्पेशलिस्ट और होते हैं जो बैंड वालों को हड़का के लोगों की फरमाइशी गाने बजवाते हैं. मेरे बड़े भैया इस काम के माहिर हैं: कुछ लोग उनको डॉन कह के बुलाते हैं। चाहे किसी को भांगड़ा बजवाना हो , या किसी को नागिन बनना हो, किसी को आज मेरे यार की शादी है ..बताने का मन हो , या किसी को (जैसे की मुझे) जिमि जिमि जिमि पे ट्विस्ट करना हो; भइया उस बैंड के शोर में भी एक बार कान में बताने पर ही सुन लेते हैं और बैंड वाला भी उनके एक बार कहने पर ही बजा देता है ; उनकी एक और खास बात बताती हूँ जब जोश बहुत ज़्यादा बढ़ गया हो तो चूँकि मेरे यहाँ सब गाने के भी शौक़ीन हैं तो भइया बैंड वाले के साथ साथ माइक भी संभाल लेते हैं. वैसे कई बारातों में मैंने ये काम पापा को भी करते देखा है। इस बार पापा की तबियत खराब होने के वजह से ,मज़ा थोड़ा कम हो गया था ..लेकिन पापा का मोस्ट फेवरिट गाना जो वो हर बारात में गाते थे (हम लोगों के साथ बरात अटेंड किये हुए सभी लोग इस बात से इत्तफाक रखेंगे).... सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था....इस बार भी मैरिज लॉन के बाहर पहुचने पे बजवाया गया ...पापा भी अंदर बैठे सुन रहे थे और आँखों में आंसू लिए मुस्कराते भी रहे। (To be continued......)

Sunday, 13 September 2015

Dar....



दर्दे बयां पे मेरे, वो करते हैं वाह वाह
बताते हैं मुझे रास्ता, जो खुद ही हैं गुमराह
किससे कहूँ मैं हाल, करूँ किसपे ऐतबार
तूफ़ान से था जो डर, वो अब तुझसे है ऐ मल्लाह

Monday, 13 July 2015

miss u...!



आज मेरे सपनों में फिर तुम आये थे
मुझे छू के अपने हाथों से मुस्काये थे
कितना मेरा मन था कि तुम कुछ बात करो
फिर से रोशन हम सब के तुम दिन रात करो

जब से हो गए तुम, सूना घर का आँगन है
चंदा के बिना खाली सा सारा आनन है
तारों में तुमको ढूंढा है , मैंने हर रात
अक्सर महसूस किया है, वो प्यारे नरम से हाथ

जब भी सपनों में ऐसे छू के जाते हो
आँखें खुलने पर याद बहुत तुम आते हो…

Friday, 29 May 2015

अप्रत्याशित जीवन



इस अप्रत्याशित जीवन में
कल क्या होगा ये नहीं है ज्ञात
कुछ बातें लगती अंत कभी
कभी लगती जैसे हो शुरुआत


कभी तिमिर भला सा लगता है
कभी चुभता सा है ये प्रभात
कभी दोनों ही प्रिय लगते हैं
हो उज्जवल दिन या श्यामल रात


इन गूढ़ रहस्यों का बोधन
इतना भी सरल नहीं होगा
कि हर कोई सब जान ही ले
कुछ तो कारण होंगे अज्ञात

Thursday, 23 April 2015

‘क्यूँ मौसम बदल रहा है’?


आज किसी ने ये समझाया, ‘मौसम बदल रहा है’
ज़रा गौर किया, मैंने भी पाया ‘मौसम बदल रहा है’

पहले तो बारिश आँसू साथ नहीं लाती थी
पहले तो नहीं ये, खेतों को, यूं झुलसाती थी
अब तो सागर लहरों से, है तूफान मचाता
अब तो बादल फटता है, जो खुशियाँ था लाता
उफ्फ़ ये मौसम बदल रहा है’, क्यूँ ये ‘मौसम बदल रहा है’

अब क्या है कारण, जो मैंने, ये सोचना चाहा
कुछ बातें याद दिला के, दिल भारी हो आया
इंसान हों, या हो नीयत, अब तो हैं सब बिक जाते
क्या नज़र है, क्या है सीरत, पल में, बदल ये जाते
फिर बड़ी है, क्या ये बात, जो ये ‘मौसम बदल रहा है’

जो लोरी सुन के सोते थे, अब ताने वो हैं सुनाते
ऐसे भी अभागे हैं कुछ, जो, बेटों से मारे जाते
क्यूँ ना दिन ये चैन खोये औ बेसुकूँ हों ये रातें
जो अब अपने शहरों में इन्सान हैं काटे जाते
फिर क्यूँ अचरज में हर आँख है, जो ‘ये मौसम बदल रहा है’

---- भावना






Wednesday, 22 April 2015

विवेक और मन

जब भी विवेक और मन में, इक अंतर्द्वंद सा चलता है…
बहुधा मन ही विजयी होता , चाहे विवेक जो कहता है.

मन को तो वो करना है, जो भी उसको अच्छा लगता है
अपनी बातें मनवाने को वो, सौ -सौ कारण देता है

यदि कभी जो मन 'तार्किक' हो जाए, ऐसे तर्क बताता है
बुद्धि-विवेक चकरा जाते हैं, मन मंद-मंद मुस्काता है