Saturday, 8 September 2012

आज सितम्बर नौ है


To,



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आज सितम्बर नौ है, तेरा जन्मदिवसअभिनव’ है 
तू नहीं उपस्थित यहाँ किन्तु तेरी स्मृतियों का अर्नव है 

है याद मुझे वो प्रथम घड़ी, जब तुमने, अपनी आँखें खोली थीं
जब लिया था पहली बार अंक में, मैं ना कुछ बोली थी
बस देखा था वो बड़े नैन और मधुर मधुर सी मुस्कान
तेरी उन प्यारी अँगुलियों से, दिन भर मैं खेली थी

माँ के दिल के टुकड़े थे तुम, पापा की आँख के तारे 
घर में सबसे छोटे थे तुम, हम सबको सबसे प्यारे
कलेजा कटता है तस्वीर देख, पापा ये अक्सर कहते हैं.
माँ तो कुछ कह पाती ही नहीं, सब अश्रु ही कह देते हैं.

ये नहीं जानना है मुझको, संजोग था ये या था प्रारब्ध 
बीत गए हैं वर्ष चार, पर अब तक भी मेरा मन है स्तब्ध
सब कुछ इन आँखों ने देखा था, पर विश्वास नहीं होता जैसे
एक बार तुम्ही बतला देते, ये हुआ क्यूँ, ये हुआ कैसे

ईश्वर ने कैसे स्वीकार किया, था हुआ क्यूँ इतना काल क्रूर
एक घर के राज-दुलारे को पल भर में कर दिया सबसे दूर
क्षण भर के लिए भी मिल सको, क्यूँ इतनी दूर तुम चले गए
हम सब तो तुमसे बड़े थे , क्यूँ यूँ तुम पहले चले गए

कितनी ही बातें हैं कहनी, तुम याद बहुत आते हो
तुम  भी तो कुछ बोलो बस, तस्वीरों में मुस्काते हो
जी करता है तुमको दूँ मैं, फिर जन्म दिवस की बधाई
पर  दृष्टि पटल पर वो दृश्य है अंकित, जब दी थी तुम्हे विदाई

सोलह वर्षों का प्रेम था वो, सोलह जन्मों का जैसे नाता
उस स्नेहमयी स्पर्श को कैसे मेरा मन बिसरा पाता
सब कुछ करने में समर्थ है तो क्यूँ असहाय मानव है
एक बार तुम्हे मिलना, छूना क्यूँ होता नहीं संभव है


अभी आया था फिर रक्षा बंधन, फिर आंसूं थमे थे
घर में भी था इक सन्नाटा सा, सब सहमे सहमे थे
मैंने  फिर चंदा से तुमको अपना संदेशा कहलाया था
बहना करती है याद तुम्हे शायद वो कह के आया था

वो बैग तुम्हारा, किताब कापियां, कपड़े सब रखे हैं
हर बार है माँ रोया करती, जब जब वो सब देखे हैं
सोचा  था नहीं बताऊंगी, तुमको ये सारी बातें
अनजाने में दे ही बैठी, दुःख की तुमको सौगातें

हर बार कई दिन पहले तुम हम सब से कहा करते थे
क़ि ले आयें उपहार तुम्हारा, हमारे भूलने से डरते थे
इस बार तुम्हारे जन्म दिवस पर, तुम ही दे दो हमको उपहार
आकर  सपनो में ही चाहे, कर लो हमसे बातें दो -चार

खुश रहो सदा तुम खिले रहो जिस भी गुलशन के बनो फूल
ये यादें भी प्यारी हैं हमको, नहीं समझना इनको शूल

आज सितम्बर नौ है, तेरा जन्मदिवसअभिनव’ है 
तू नहीं उपस्थित यहाँ किन्तु तेरी स्मृतियों का अर्नव है
             
                         
                                                                                                                   





















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                                                                                          --------- तुम्हारी  दीदी 

Friday, 7 September 2012

उलझन


 उलझन  


बचपन में इक स्वप्न था देखा, बनना है कुछ मुझको..
पाना है कुछ, निज कर्मों से होना संतुष्ट है मुझको...

इस कर्म भूमि की  उष्ण रेत पर मैं चलती ही रही थी...
हाँ कुछ डग थे अनजाने से, तब मैं सहमी सहमी थी...

कहीं प्रेम मिला, कहीं अनुभव थे, जो देते थे मन को बल..
संग संग मेरे चलते थे, अवनि, अम्बर और ये जल..

चढ़ लिए हैं कुछ सोपान किन्तु  वो लक्ष्य अभी है ओझल..
मेरे इस मन की दशा भी, कभी व्यग्र, कभी है चंचल..

पर मन करता है प्रश्न मेरा, क्या मंजिल से ही है प्रीत..
"पथ" तेरे जो संग चला है, ये भी तो है तेरा मीत..

फिर होकर सजग ये चित्त मेरा कहता है झिंझोड़ के मुझको..
ये मार्ग नहीं था लक्ष्य तेरा, कुछ प्राप्त था करना तुझको..

तब भी ये मैं जान सकी थी, अब तक है जाना..
वो कौन है जो सब कह देगा, क्या है मुझको पाना..

हो रहा ह्रदय में उथल-पुथल, अब कौन बताये मुझको..
क्या बनना है, क्या करना है और क्या पाना है मुझको....