Thursday, 6 September 2012

मेरे आदर्श..

हे सुख दुःख के साथी मेरे, कहती हूँ तुम्हे ये आज सहर्ष ..
तुमसे ही जीना सीखा है, तुमको ही माना है आदर्श..

कहती मैं नहीं भगवान हो तुम, पर इंसान हो, ये क्या कम है...
इस छद्म वेश की दुनिया में, इंसान ही मिलना दुर्लभ है ...
ईश्वर ने दिया जो सर्वश्रेष्ठ, जीवन में वो उपहार हो तुम ..
है गर्व मुझे तुम मेरे हो, मेरा सारा संसार हो तुम...
ये प्रेम तुम्हारा ही तो है,
 जो मुझको संबल देता है..
यदि कहीं जो ठोकर मिलती है, उठने का बल भी देता है....

हो पथ कितने भी पथरीले, तुम संग हो तो, है क्या संघर्ष...
तुमसे ही जीना सीखा है, तुमको ही माना है आदर्श...

ये ओज तुम्हारी वाणी का, मुझमे साहस भर देता है..
ये दृढ़ निश्चय और ये संयम, पथभ्रष्ट न हो ये कहता है..
तुमने ही तो समझाया है, करना न कभी है समय व्यर्थ..
जीवन के गूढ़ रहस्यों का कर दिया है कितना सरल अर्थ..
जब मन गिरता है मेरा तो, विचलित तुम भी तो होते हो..
मेरी त्रुटियाँ क्षमा कर के, अपने अभिमान को तजते हो...

संकल्प है मेरा साथ तुम्हे, बस दे उत्कर्ष, दे उत्कर्ष..
तुमसे ही जीना सीखा है..तुमको ही माना है आदर्श..

---------- तुम्हारी भावना ..

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